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1 Jul 2021 · 1 min read

!!*** टहलती हैं रातें ***!!

!! मुक्तक: टहलती हैं रातें !!

122/122/122/122

कोई लाख टाले न टलती हैं रातें,
बदलती हैं करवट मचलती हैं रातें।
अगर हमसफ़र ही दगाबाज निकले,
तो छत पर अकेले टहलती हैं रातें।।

दीपक “दीप” श्रीवास्तव
महाराष्ट्र

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