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26 Jun 2021 · 1 min read

- जब मैं खो जाऊं --

जीवन संगिनी हो या जीवन साथी
जब तक सांस है तब तक आस
एक के जाने के बाद एक दूजे
की बातों का बहुत होता है एहसास !!

सुबह घर से जब विदा होते हैं
तैयार होकर निकल पड़ते हैं
बेशक हो जाती है मीठी खट्टी बात
शाम होते ही खिल जाते हैं एहसास !!

कभी ताना , कभी झगड़ जाना
कभी मुंह फुला कर एक कोने में
बैठ कर दाँतों में बातों को चबा जाना
फिर भी खत्म नही होते जज्बात !!

शाम ढलते ही अपना दिलाना एहसास
कोई नही आयगा मेरे सिवा तुम्हारे पास
याद रखना जब नजर नही आऊं घर में
कैसे काटोगे दिन रात अकेले
रह रह कर आएगी मेरी बहुत याद !!

बस यादों के साए में रह जाओगे
पूरे घर में कहीं मुझे न पाओगे
जब मैं खो जाऊं ,लौट के न आऊं
शायद गुजार न सकोगे इक रात !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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