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26 Jun 2021 · 1 min read

जंगल का दृश्य ही अलग था !

जंगल का दृश्य ही अलग था !
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कल एक ख़ास पल आया !
मुझे ऐसा कुछ याद आया !
जो मुझे जंगल में ले गया !
डर से पूरा तन सिहर गया !!

जंगल का दृश्य ही अलग था !
आग कुछ गया जो सुलग था !
हो गया बंद ये मेरा पलक था !
चहुॅंओर छिड़ गया इक बहस था !!

दिल में थोड़ी सी कसक थी !
जंगल में आग जो लगी थी !
पास-पड़ोस खाली ही पड़ी थी !
होश तो मेरी नहीं अब बची थी !!

एक ही पल में होश इतने उड़े !
हर दृश्य पर हुए कान मेरे खड़े !
न आए कोई भी दृश्य सुनहरे !
जल चुके थे जंगल सारे हरे-भरे !
जल चुके थे जंगल सारे हरे-भरे !!

स्वरचित एवं मौलिक ।

अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : २६/०६/२०२१.
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