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25 Jun 2021 · 1 min read

"काव्य-संदेश"

“काव्य-संदेश”
✍️✍️✍️✍️

काव्य को अगर रस ने भिंगाई ,
तो कई भाव हैं, इसके स्थायी;
समझना चाहिए सब कवि को,
जिसने कोई भी कविता बनाई।

जब भाव ही नहीं रहेगा, तो;
क्या होगा यों ही,रस टपकने से;
यूं ही कविता नही बन जाती,
कहीं, कुछ भी लपकने से।

भाव का, यदि होगा अभाव;
नही होगा,जन पर कुछ प्रभाव;
भाव ही, कविता का सार है;
यहीं, टिकी साहित्य का संसार है।

कविता का जो भाव बताइये,
तभी खुद को भी, वैसा बनाइए;
उसके बाद ही, कोई राग गाइए,
काव्य को तब ही, सामने लाइए।

लेखन में सदा ही सही मात्रा;
और छंद सही से समझाइये,
लिखते समय मत घबराइए,
सदा ही मंद-मंद मुस्कुराइए।

छंद की कीमत जानिए,
अपने को अब लघु बताए,
काव्य, जग पे छोड़िए कि;
वो, किसको गुरू बताए।

काव्य सदा सजी हो, अलंकार से;
लाइए इसे सबके सामने, प्यार से;
इसमें अहंकार की झलक ना दिखे,
चाहे आप, कभी कुछ भी लिखे।

अलंकार तो, ऐसा “गहना” है;
उसी काव्य को अच्छा बनाता,
जिसने , हमेशा इसे पहना है;
बस, और मुझे कुछ नही कहना है।

स्वरचित सह मौलिक
….. ✍️ पंकज “कर्ण”
……………..कटिहार
२५/६/२०२१

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