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23 Jun 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

वो किस्से औ’ कहानी से निकलकर कौन आया था
मिरी ख़ातिर वो बच्चे सा मचलकर कौन आया था

ये सुनती हूँ कि हँसता है मिरे टूटे हुए दिल पर
तू पर्वत है तो ज़र्रे सा बिखरकर कौन आया था

कभी जो हीर देखी थी भटकती ग़म के सहरा में
कहो तब भेस राँझे का बदलकर कौन आया था

किसे थी चाह मिलने की समंदर से भला ऐसे
पहाड़ों के शिखर से यूँ पिघलकर कौन आया था

किया वादा तुम्हीं ने था नहीं मिलना कभी हमको
मग़र उस शाम वादे से मुक़रकर कौन आया था

चलो माना कि दुःखते हैं तुम्हें ये आज गुलदस्ते
कभी काँटों भरे रस्ते गुजरकर कौन आया था

तुम्हारी इक नज़र में सात जन्मों के फ़साने थे
न जाने उस नज़र में तब उतरकर कौन आया था

सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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