बुंदेली तीन दोहे- “दद्दा”
बुंदेली दोहे-बिषय-“दद्दा”
1
दद्दा बैठे पोर में,
मूंछन पै दे ताव।
लंबी लंबी फैंकते
कर रय है बतकाव।।
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2
दद्दा तो सुनतइ नई
कै कौनउ भी बात।
अपनी अपनी हांकते,
दे रय सबकौ मात।।
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3
दद्दा बाई की करो,
सेवा दिन अरु रात।
उनके ही आसीस से
बन जायेगी बात।।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
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(मौलिक एवं स्वरचित)