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17 Jun 2021 · 1 min read

#राहीं

मैं राहीं हूँ,
इन राहों का बस चल रहा हूँ।
मंजिलें मिलेगीं मुझे आशाओं की,
इसलिए वक्त के साथ ढल रहा हूँ।
मैं राहीं हूँ,
इन राहों का,बस चल रहा हूँ।।

ऊँची-नीचींं हैं राहें,
फिर भी सरपट दौडती मेरी निगाहें।
हरपल खुली मेरी बाँहें।
आगोश में लेने को पर,
कम्बख्त कभी आती नहीं,
मेरे ख्वाब सजाने को।
एक दिन आयेगी वो मेरे करीब,
वो बनेगी मेरा नशीब।
यूँ ही नहीं मैं अपने फैसलों में अटल रहा हूँ।
मैं राहीं हूँ,
इन राहों का,बस चल रहा हूँ।।

आँधियाँ चली,बरसातें हुईं,
सर्दियाँ ढलीं,जेठ की दोपहरियाँँ चलीं।
पर मैं डटा रहा पथ पर,
सवार होने के लिए विजय रथ पर।
मंजिलें मुझे मिल जाऐंगीं।
बाँच्छें मेरी खिल जाऐंगीं।
मन ही मन ये सोचकर मैं मचल रहा हूँ।
मैं राहीं हूँ,
इन राहों का,बस चल रहा हूँ।
मंजिलें मिल जाऐगीं मुझे आशाओं की।
इसलिए वक्त के साथ ढल रहा हूँ।
मैं राहीं हूँ ,
इन राहों का,बस चल रहा हूँ।।

मौलिक व स्वरचित रचना के
रचनाकार कवि :-Nagendra Nath Mahto.
17/June/2021
All copyrights :- Nagendra Nath Mahto.
गायक,संगीतकार,गीतकार व कवि के रूप में Bollywood में कार्यरत।
Youtube:-n n mahto official

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