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8 Jun 2021 · 1 min read

बरसात

मृदा मुदित हो तृप्ति
से गीत गा चली है।
वसुधा की सरसों-चादर
सरकी-गिरी मिली है।

सज्जित वसुंधरा भी
मिलती धुली-धुली है।
नयनों से मेघ उलझे
बरसात आ मिली है।।

पूजे गये हैं बरगद,
भावुक बड़ी घड़ी है।
अमुवा की डालियाँ भी,
गुनगुन करे लगी हैं।

लाडो बनी कली है
शाखों पर आ खिली है।
नयनों से मेघ उलझे
बरसात आ मिली है।।

पयोधि ने विहँस के,
अंबर को कुछ रिझाया।
बदला धरा का ऐसा
प्रतिबिंब हर्ष लाया।

मलय ने तान छेड़ी,
बौछार गा पड़ी है।
नयनों से मेघ उलझे
बरसात आ मिली है।।

चर्चे अँदरसे के हैं,
महकी गली-गली है।
प्रियतम के लाल रंग से,
रचती हथेली भी है।

पाहुन की याद करती,
बूँदों की एक लड़ी है।
नयनों से मेघ उलझे
बरसात आ मिली है।।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

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