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26 May 2021 · 1 min read

कविता - "मां" -राजीव नामदेव "राना लिधौरी"

कविता- ” मां”

जीवन पथ पर
अमिट छाप सी लगती है।
अनुभव की रेखाएं
अब माथे पर दिखती है।

दाढ़ी और बत्तीसी भी तो,
अब हिलने लगती है।
सिर पर सफेद चांदी सजी,
अनुभव की मोहर लगती है।

देखा सब कुछ इन आंखों ने,
अब थकन सी लगती है।
मुझे तो यह माता यशोदा,
मरियम, टैरेसा लगती है।।
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@ राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

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