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24 May 2021 · 1 min read

अंधेरी रात

***** अंधेरी रात (गजल) ****
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**** 212 222 222 12 ****
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छा गई जग में अंधेरी रात है,
ईश की कैसी सुन्दर सौगात है।

रात ने अंधेरे को घर में छिपा,
चाँद उलझा मेघों में क्या बात है।

खूब सारे तारे दामन में लगा,
चाँदनी ने दे दी तम को मात है।

रोशनी मद्धिम सी देता चन्द्रमा,
शर्म से मर जाते सारे जज्बात है।

आँसुओं से आँखें भर सी है गई,
आसमां गिरती जैसे बरसात है।

यार मनसीरत जैसे मिलते नहीं,
अंक जीवन में बेशक ही सात है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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