Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
4 Apr 2021 · 1 min read

बदलाव

मै पहले से अब कुछ बदलना चाहती हूं

डरती थी अकेली सड़क पर अब मैं निडर दौड़ना चाहती हूं
नारी की जात आंखें झुका कर सबके समक्ष पेश आती थी
अब सर उठा कर जग में दबंग जीना चाहती हूं
कोमलांगी अबला स्त्री का खिताब पाकर
चौकन्नी चार दिवारी में कैद रहती थी
गमों को चुपचाप सहन कर आंसुओ को अंदर पी जाती थी
अब मैं ‌पुरूष की भांति स्वतंत्र निडर मजबूत आत्मनिर्भर होना चाहती हूं
गमों को अलविदा कर सारी खुशियां बटोरना चाहती हूं
मैं सुलक्षण बहु बनी घर तक सीमित रहती थी
अब मैं आधुनिक सास बन बदलना चाहती हूं।
– सीमा गुप्ता, अलवर

Loading...