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13 Mar 2021 · 2 min read

पनघट सूने हो गये

देखें एक कुंडलियां छंद के माध्यम से हास्य-व्यंग्य?❤️?
पनघट सूने हो गये, है वीरानी आज।
सूख गये कूएं सभी, सूनेपन का राज।
सूनेपन का राज, नहीं दिखती पनिहारी।
मजनूं हुए विरान, गयी है किस्मत मारी।
रहा फेसबुक छाय,ढूंढते हैं अब लंपट।
कहै अटल कविराय,हुए हैं वीरां पनघट।

प्रदत्त विषय शब्द – जीभ/जिह्वा/बोलती/रसना/रसिका/रसला/वाणी मुक्तक :-
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तुम मेरी जिह्वा बसो, हे मां अंबे आन।
वाणी में मधुरस भरो,मिले नयी पहचान।।
रसना,रसिका,बोलती, में भर दो नव छंद,
दुनिया से सांझा करूं,हो जग का कल्यान।।
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दोहे
सूर्य देव का कर नमन, लिखिए कुछ नव छंद।
छंद-छंद में हो भरा, फूलों का मकरंद।।
सृष्टी का अब मत करो,दोहन मेरे मित्र।
वरना बदलेगा सभी,होगा बहुत विचित्र।।
कोरोना आगाज है,मत करना अब भूल।
मत करना अब देर तुम,बदलो अभी उसूल।
दे दी इक चेतावनी, सृष्टि ने यह आज।
मानव रह औकात में,वरना बदले साज।।
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छंद – वीर/आल्ह
मुक्तक

शीत लहर का हुआ आगमन,और धुंध ने किया कमाल।।
सीटी बजा रही है सर्दी, तापें बबुआ आग पुआल।।
मफलर से ठंडी नहिं भागे,कजरी बाबा खींचें सांस,
भेद नहीं करती यह सर्दी, सबके मन में उठा सवाल।।
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छंद:विधाता
(१)
अंगूठा अब दिखाओ मत बनी बातें बिगड़ जातीं।
जुबां से तल्खियों की ही बनी बातें बिगड़ जातीं।।
करो संवाद आपस में सलीका है यही बेहतर ,
समय की मांग है ये ही नहीं बातें बिगड़ जातीं।।
(२)
नहीं उंगली उठाओ तुम किसी पर बेवजह यारो।
सभी घर कांच के होते नहीं पत्थर कभी मारो।।
अगर पत्थर उछाला तो ये’ दिल भी टूट जायेगा,
लिखें सबकी कुशलता को सभी पर प्यार को वारो।।
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हाथरस कांड
एक मुक्तक:-

हैवानों के क्रूर हाथ ने, देखो कैसी दशा बना दी।
भूल गया मर्यादा सारी, अपनी फिर औकात दिखा दी।
अस्त व्यस्त कर डाले कपड़े, तोड़ दिए उसके सब सपने,
शर्मसार मानवता देखो,इक नारी चिर नींद सुला दी।

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