Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Mar 2021 · 2 min read

पनघट सूने हो गये

देखें एक कुंडलियां छंद के माध्यम से हास्य-व्यंग्य?❤️?
पनघट सूने हो गये, है वीरानी आज।
सूख गये कूएं सभी, सूनेपन का राज।
सूनेपन का राज, नहीं दिखती पनिहारी।
मजनूं हुए विरान, गयी है किस्मत मारी।
रहा फेसबुक छाय,ढूंढते हैं अब लंपट।
कहै अटल कविराय,हुए हैं वीरां पनघट।

प्रदत्त विषय शब्द – जीभ/जिह्वा/बोलती/रसना/रसिका/रसला/वाणी मुक्तक :-
—————————————————-
तुम मेरी जिह्वा बसो, हे मां अंबे आन।
वाणी में मधुरस भरो,मिले नयी पहचान।।
रसना,रसिका,बोलती, में भर दो नव छंद,
दुनिया से सांझा करूं,हो जग का कल्यान।।
************
दोहे
सूर्य देव का कर नमन, लिखिए कुछ नव छंद।
छंद-छंद में हो भरा, फूलों का मकरंद।।
सृष्टी का अब मत करो,दोहन मेरे मित्र।
वरना बदलेगा सभी,होगा बहुत विचित्र।।
कोरोना आगाज है,मत करना अब भूल।
मत करना अब देर तुम,बदलो अभी उसूल।
दे दी इक चेतावनी, सृष्टि ने यह आज।
मानव रह औकात में,वरना बदले साज।।
*************
छंद – वीर/आल्ह
मुक्तक

शीत लहर का हुआ आगमन,और धुंध ने किया कमाल।।
सीटी बजा रही है सर्दी, तापें बबुआ आग पुआल।।
मफलर से ठंडी नहिं भागे,कजरी बाबा खींचें सांस,
भेद नहीं करती यह सर्दी, सबके मन में उठा सवाल।।
*********”***”””***********************
छंद:विधाता
(१)
अंगूठा अब दिखाओ मत बनी बातें बिगड़ जातीं।
जुबां से तल्खियों की ही बनी बातें बिगड़ जातीं।।
करो संवाद आपस में सलीका है यही बेहतर ,
समय की मांग है ये ही नहीं बातें बिगड़ जातीं।।
(२)
नहीं उंगली उठाओ तुम किसी पर बेवजह यारो।
सभी घर कांच के होते नहीं पत्थर कभी मारो।।
अगर पत्थर उछाला तो ये’ दिल भी टूट जायेगा,
लिखें सबकी कुशलता को सभी पर प्यार को वारो।।
***********
हाथरस कांड
एक मुक्तक:-

हैवानों के क्रूर हाथ ने, देखो कैसी दशा बना दी।
भूल गया मर्यादा सारी, अपनी फिर औकात दिखा दी।
अस्त व्यस्त कर डाले कपड़े, तोड़ दिए उसके सब सपने,
शर्मसार मानवता देखो,इक नारी चिर नींद सुला दी।

Language: Hindi
1 Like · 312 Views

You may also like these posts

*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
शराब मुझको पिलाकर तुम,बहकाना चाहते हो
शराब मुझको पिलाकर तुम,बहकाना चाहते हो
gurudeenverma198
! नारीशक्ति वंदन !
! नारीशक्ति वंदन !
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
कुटिल बुद्धि की सोच
कुटिल बुद्धि की सोच
RAMESH SHARMA
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
तेरे इश्क़ में थोड़े घायल से हैं,
तेरे इश्क़ में थोड़े घायल से हैं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"ख़्वाहिशें"
Dr. Kishan tandon kranti
श्रीराम कृपा रहे
श्रीराम कृपा रहे
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
लंका दहन
लंका दहन
Paras Nath Jha
#आह्वान
#आह्वान
*प्रणय*
तू मिला जो मुझे इक हंसी मिल गई
तू मिला जो मुझे इक हंसी मिल गई
कृष्णकांत गुर्जर
नहीं करता
नहीं करता
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
दीपों की माला
दीपों की माला
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*कैसा है मेरा शहर*
*कैसा है मेरा शहर*
Dushyant Kumar
अपनेपन की आड़ में,
अपनेपन की आड़ में,
sushil sarna
दोहा पंचक. . . संघर्ष
दोहा पंचक. . . संघर्ष
Sushil Sarna
#पंचैती
#पंचैती
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
आखिरी वक्त में
आखिरी वक्त में
Harminder Kaur
*बे मौत मरता  जा रहा है आदमी*
*बे मौत मरता जा रहा है आदमी*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
प्रोटोकॉल
प्रोटोकॉल
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
डॉ.सीमा अग्रवाल
"व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत को जान लेता
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
*हर साल नए पत्ते आते, रहता पेड़ पुराना (गीत)*
*हर साल नए पत्ते आते, रहता पेड़ पुराना (गीत)*
Ravi Prakash
3369⚘ *पूर्णिका* ⚘
3369⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
कर्णधार
कर्णधार
Shyam Sundar Subramanian
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—1.
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—1.
कवि रमेशराज
हर दिल खूबसूरत है
हर दिल खूबसूरत है
Surinder blackpen
डॉ अरुण कुमार शास्त्री /एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री /एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Loading...