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24 Feb 2021 · 1 min read

ख्वाव मुक्कमल नही हुए

कुछ ख़्वाव खुली आँखों से तो कुछ बंद आँखों से देखे थे ।
मुक्कमल वही हुए , जो मैंने कभी नही देखे थे ।।

उसने जो रास्ता बनाया मैं उसी पर चलता रहा ।
जो रास्ते मैं चाहता था, वो उसने कभी नही देखे ।।

आज दुनिया मुझे बेकार की नजरों से देखती है ।
मैं वही हूँ, मगर किसी ने उसके क़सूर नही देखे ।।

मैं आज हूँ कल नही हूँगा, घिसती हुई चट्टान की तरह ।
सबने मुझे देखा, मगर किसी ने मेरे घाव नही देखे ।।

ख़्वाव बोये थे मैंने, गाँव की उपेक्षित और तंगहाल मिट्टी में ।
मैंने शहरों के महल देखे, मग़र गाँव के बदहाल नही देखे।।

आसां नही था पगडण्डियों से निकलकर हाइवे पर चलना ।
मैंने स्पीड नही, गाँव से निकलती राहों में गड्ढे ही गड्ढे देखे ।।

मैं हर चुनौती में ढह गया, कच्चे बर्तन की तरह ।
सभी ने फूटा घड़ा देखा, कुम्हार के हाथ नही देखे ।।

तुझसे शिकायत करूँ भी तो क्या कहूँ .?
तूने मेरी थाली में दाल देखी, दाल में पड़े कंकड़ नही देखे ।।

गलती मेरी ही थी कि, मैं बहक गया समय के बहकावे में।
मैंने हर भरे जंगल देखे, मग़र चट्टानों पर खिलते फूल नही देखे।।

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