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12 Feb 2021 · 1 min read

अधूरा ख्वाब

********अधूरा ख्वाब************
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मैं अभागा तुम्हें चाह कर भी पा न सका ,
दिल में तुम्हारे कभी घर बना न सका।

महकते फूलों पर भंवरा मंडराता ही रहा,
प्रेम रस का घूंट मैं कभी लगा न सका।

रग रग में मेरी खुशबू सी समा गई थी तुम,
तुम मेरी हो,मैं तुम्हें ये कभी बता न सका।

भटकता रहा जोगी सा तेरी प्रेमगलियों में,
प्रेम गली में तेरे घर का पता लगा न सका।

दूर से निहारता रहा अनछुआ रूप सौन्दर्य,
नजरों से देखता रहा,अपना बना न सका।

सावन मास प्रेम का सूखा ही बीत गया,
बाहों में ले कर झूले नेह के झूला न सका ।

होठों की लाली, कानों में बाली बेहद पसंद,
निज हाथों से कानों में बाली पहना न सका।

मनसीरत यूँ ही तड़फता रहा कूंज बन कर,
प्यासा रहा तेरे प्रेम का,प्यास बुझा ना सका।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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