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12 Feb 2021 · 1 min read

हाय! बड़े दर से छोटे घर में आ गए

22 + 22 + 22 + 22 + 22 + 2
हाय! बड़े दर से छोटे घर में आ गए
गाँव के पन्छी बेकार शहर में आ गए

सीने में ही दफ़न थे जो राज़े-उल्फ़त
वो अफ़साने भी सबकी नज़र में आ गए

बहके हुए जज़्बात ग़ज़ल में ढ़लते रहे
दिल से निकले जो शे’र बहर में आ गए

साथ मिला जो तिरा, आँखों से पीते रहे
दिल के अरमां यूँ खुद ही लहर में आ गए

डिग्री कॉलेज की यूँ ही गंवाये हम भी
कुछ न बने तो यारो दफ़्तर में आ गए

आज़ाद कहाँ थे हम, दास रिवाज़ों के
अब क़ैद से छूटे तो अम्बर में आ गए

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