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11 Feb 2021 · 2 min read

आशाओं का सत्यानाश

करो किस किस पर यकीन
किसी ना किसी पर तो करना होगा
लोकतंत्र है
किसी को तो वोट करना होगा ।

ना करो वोट
दबा दो नोटा की बटन
फिर भी कोई जीत जाएगा
व्यवस्था की जबरदस्ती को सहना होगा ।

लम्बे लम्बे भाषण
चासनी में लिपटे भाषण
मजबूर की अच्छी जिन्दगी के भाषण
वोट भविष्य की आश के लिए करना ही होगा ।

किसान ,मजदूर , युवा
बेरोजगार मजबूर हुआ
महिला बच्चा सभी के लिए भाषण
देश के खोखले विकाश के लिए भाषण ।

भाषण के वाद क्या..?
वाह वाही अखबार समाचार की हेडलाइन
भूल गए सब भाषण जनता ने थूक दिए भाषण
और क्रूर हो गया शासन प्रशाशन ।

जीत के वाद क्या..?
पार्टी एजेंडा, फीते काटना, घूमना घुमाना
बलात्कार,भ्रस्टाचार,अत्याचार,जातिचार, धर्माचार,वोटाचार
सब सही,मार सही,गाली सही,मुकद्दमा सही,जेल सही।

खेत बिक गये किसान के
सड़क के लिए
दुकान के लिए, बिल्डिंग के लिए
किसान हो गया नशाबाज दिहाड़ी मजदूर जिन्दगी के लिए ।

किसी ने उजागर तो किसी ने छिपकर
खा लिया सारा गौदाम
भर लिया अपना गौदाम
ईमानदारी दिखाकर फाइलों में छिपाकर ।

गाँव बेहाल
शहर का नर्क सा हाल
महंगाई, पुलिसदारी,सरकारी रंगदारी
युवा बेचारा आवारा बंदूकधारी डिग्रीधारी ।

योजना ही योजना
हर तरफ से गूंजती योजना
हर मंच से निकलती योजना
योजना की बाढ़ से देश की जड़ खोदना।

कोई अति धर्मत्व
कोई अति सेक्युलरिस्ट
कोई अति जातिवादी
कोई नही विकासवादी सब लफ़ंगेवाजी।

झूठ ही झूठ
आशा ही आशा की झूठ
हर वार मिलती निराशा
लोकतंत्र में घुन का हो रहा इज़ाफ़ा ।

कोई गांधी-नेहरू को
कोई पटेल-बाजपेयी को
कोई अम्बेडकर-ज्योतिबा को
पर कोई नही पकड़ रहा आज के दर्द को ।

सब उल्टे पाँव भाग रहे हैं
इतिहास को खंगाल रहैं हैं
वर्तमान को सामंती बनाकर
जनता में खाइयां खोदकर गहरी चोट डाल रहें हैं ।

सब बिक गया,संसद,कोर्ट,अस्पताल,स्कूल,पुलिस,प्रशाशन
ज्ञान बिक गया,विज्ञान बिक गया,ईमान बिक गया
पढ़ा लिखा विद्वान सबसे पहले बिक गया
भारत को बेककर खुद मालामाल हो गया ।

जबरदस्ती का विकास
बाजार का विकास व्यापारी का विकास
मजबूरी का विकास उधारी का विकास
नेतागिरी का विकास वोट लेने का विकास ।

देश का लगातार हो रहा सत्यानाश ।

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