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10 Feb 2021 · 1 min read

।।।हूँ मै ना आवारा किसी गलियों का।।।

ना मरहम है मेरे पास,
ना मर हम गये साकिल।
तू तो खुद ही मरहम है,
तो दवा किसके लिए आखिर ।।
बेचैन जो जमाना,
दवा खुद बन जाती ।
करते हम भी भरोसा तुझ पर,
जो कसम ना कभी खाती।।
है गुमान तुझे अपने,
जो खुद की जवानी पर।
कुछ वसूल भी है मेरे,
जो चलता हू निशानी पर।।
जो जुल्फे तेरी हरदम,
मुझे बदनाम करती है।
हू मै ना आवारा किसी गलियो का,
फिर जाने क्यों मुझसे सवाल करती हैं।।।

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