अविरल धार
मैं चाहती हूँ कुछ लिखना,औऱ क्यो नही..?
नहीं!नहीं! बहुत कुछ लिखना सच में..
अपना रोष प्रगट करना चाहती हूँ
आज के हालात पर कुछ लिखना चाहती हूँ।
अव्यवस्था ओर आज के भ्रष्टाचार पर
रिश्वत खोरी, दलाली,बलात्कार पर
बेइमानी कालाबाजारी,धोखेबाजी पर
अपना क्रोध शब्दो मे लिखना चाहती हूँ।
किन्तु न जाने क्यों..? लिख नहीं पा रही हूँ
तो अजीब सी उलझन में अपने को पा रही हूँ
मेरे दिल पर छाप सी छप जाती हैं आखिर क्यों..?
अन्दर के संग्राम को रोकने को लेखनी क्यो न चले?
कागज ओर मेरी लेखनी प्रतीक्षा करते हैं
कि मैं कटु सच्चाइयाँ निकाल कर ला सकूं सामने
असंतोष कागज पर लिखे मेरी लेखनी
संतोष मुझे ही होता हैं जब चलती मेरी लेखनी।
कागज साक्षी हैं मेरी लेखनी का कि
नही डरना सच लिखने ,बोलने से कभी
बस शब्द किसी पत्र पत्रिका की शोभा न बन जायें
सच लिखे मेरी लेखनी चुप न रहे परिस्थिति देख।
मेरे मन के उठते हुए भाव बने शब्दो की संकल्पना
मेरा हर शब्द बोले सच औऱ दिखाए आइना
मेरी लेखनी चले अपने सच के लिए
बस बिना रूखे,बिना थके,अथक अविरल,प्रवाह।
डॉ मंजु सैंनी