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8 Feb 2021 · 1 min read

गिलहरी

बालकनी में दिखी गिलहरी,
नजर हमारी उस पर ठहरी।

नन्हीं छोटी-सी है प्यारी,
जिसके तन पर गहरी धारी।

रोयेंदार पूँछ झबरीली,
काली पीली बड़ी फबीली।

कंचे जैसे आँखें दिखते,
दाँत दूध से उजले लगते।

उछल- उछल कर वो चलती है,
सबके मन को हर लेती है।

लगती कितनी सुन्दर कोमल ,
है विद्युत के जैसी चंचल।

दिन भर डाली से उस डाली,
फिरती रहती है मतवाली।

श्रम से कभी नहीं थकती है,
काम करो सबसे कहती है।

कुतर-कुतर कर फल को खाती ,
मृदा खोद कर बीज छुपाती।

जिससे वृक्ष निकल आते हैं,
सभी जीव छाया पाते हैं।

-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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