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5 Feb 2021 · 1 min read

हो गए जो

हो गए जो पत्थर के गम सहते – सहते ।
मौन हो गए निज गाथा कहते कहते ।।

उनकी पीड़ा की गहराई जाने कौन ,
जिनके ऑंसू सूख गए बहते – बहते …

बाहर हँसी , उदासी जिनके अंदर है ।
दुख दर्दों का दिल में बसा समंदर है ।।

खुशियों के पल आये जीवन में ऐंसे ,
जैंसे उड़े पखेरू सब रहते – रहते …

शांत नदी है गहराई की कहाँ थाह है ?
बीहड़ में भटकी दुर्गम सी कठिन राह है ।।

धाराओं से पीछे छूटे मधुर किनारे ,
शेष रही जिनके दामन गहते – गहते …

जिनने सपने बुनकर ऊंचे महल गढ़े ।
आशाओं के दीप लिए जो शिखर चढ़े ।।

झंझावाती बे मौसम की बरसातों में ,
एक एक कर बचे न कुछ ढहते ढहते…

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