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4 Feb 2021 · 1 min read

प्रेम विरह के खत

तू क्या जाने
ओ रे ऊधो
विरहा जीवन की ये तड़फ
ऐसे धड़के मेरा जिया
जैसे सावन भड़के तड़क-फड़क।

उठती यौवन की चिंगारी
जलादे उपवन
धू धू धड़क-धड़क ।

बेबस अखियाँ
ढुंडती उसको
आता जाता वो,
जिस सड़क सड़क ।

तू क्या जाने
ओ रे ऊधो
बेबस लफ्जो की ये उमस
खोया जीवन
उसका चिंतन
दिन-रात पलकों
से टपक टपक।

सावन गुजरा
शरद आ चली
मेरा जीवन
उजड़-बिखर ।

प्रेम नही
उन शब्दों का
जो शास्त्रों में लिखे
इधर उधर

तू क्या जाने
ओ रे ऊधो
चांदनी रातों की ये तड़फ
डसती यामिनी
गिरते तारे
तोड़ें नशों को
तड़क-तड़क ।

एक बूंद प्रेम मिलन की
करदे बंजर महक चहक ।

तू क्या जाने
ओ रे ऊधो
बिरहा जीवन की ये तड़फ।

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