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4 Feb 2021 · 1 min read

उदय हो रहा विजय का सूरज,, छटने लगा अँधेरा है।।

उदय हो रहा विजय का सूरज,,
छटने लगा अँधेरा है।
कलरव फिर-से गूँज उठा है,,
होने लगा सवेरा है।।
कोयल की ध्वनि फिर गूँजी,,
चिड़ियों ने डाला डेरा हैं।।
उदय हो रहा विजय का सूरज,,
छटने लगा अँधेरा है।।
सागर मानो नाच-नाचकर,,
स्वयं सागर में तैरा है।
उदय हो रहा विजय का सूरज,,
छटने लगा अँधेरा है।।
यह सूर्य बड़ा शीतल लगता है।
नभ को तारों ने घेरा है।
उदय हो रहा विजय का सूरज,,
छटने लगा अँधेरा है।।
——–भविष्य त्रिपाठी…..

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