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30 Jan 2021 · 1 min read

समय

समय की
अंजुलि से देखो
फिसल कर,
कुछ क्षण,पल भर में
बिखर गए,न जाने कहाँ
स्मृतियों की गहनतम सी
खाई के आँचल पर।
ढ़लती सांझ सी जीवन रेखा मेरी
उम्र ढल गयी,न जाने अपने से ही
बरस गयी आँखें,आंसू बन जैसे
घटा घनघोर,छाई हो बरसात के लिए
जल गई,खाक हो गई सारी
इच्छाओ,आशाओं की चिता सी बन
बस रह गयी,मेरी स्म्रतियों में खुद ही
बुझी सी राख़,सी यादों की झलकियां
मेरे मन के अंतस्तल पर
बस यादे बन कर

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