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20 Jan 2021 · 1 min read

कविता_अब तक हैं कितने दर्द सहे.....

कविता अब तक हैं कितने दर्द सहे
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जन्नत का चैन सुकून लगे, अब फिर से लौट के आयेगा।
अब तक हैं कितने दर्द सहे,इतिहास भुला ना पायेगा।।

कितनी सूनी हुई गोद, राखी की मिटि कलाइयाँ थी।
सिन्दूर तरसता रहा माँग, मातम की बस परछाइयाँ थी।।
नन्ही सी जान यूँ ही बिलख रही, माँ का प्यार सुला ना पायेगा।
अब तक हैं कितने दर्द सहे, इतिहास भुला ना पायेगा।।

अब तक तो खेली थी होली,खून भरी पिचकारी से।
गद्दारों ने बहुत डराया,पत्थर की बम बारी से।
अब की बार जो करी,हिमाकत कोई छुड़ा ना पायेगा।
अब तक हैं कितने दर्द सहे ,इतिहास भुला ना पायेगा।।

बहुत हो गई आँख-मिचौनी,अब तो दुश्मन को देख लिया।
करता चिकनी चुपड़ी बातें,ढोन्गी का तूने भेष लिया।।
ऐसी आग लगा देंगे हम,कोइ बुझा ना पायेगा।
अब तक हैं कितने दर्द सहे ,इतिहास भुला ना पायेगा।।

घाटी में अब ना रण होगा, यूँ ही खिलती रहेंगीं वादियाँ।
ना कोई गद्दार बनेगा ,गूँजेंगी फिर शहनाईयाँ ।।
लहराएगा सदा तिरंगा,कोई झुका ना पायेगा।
अब तक हैं कितने दर्द सहे ,इतिहास भुला ना पायेगा।।

जन्नत का चैन सुकून लगे, अब फिर से लौट के आयेगा।
अब तक हैं कितने दर्द सहे,इतिहास भुला ना पायेगा।।

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