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18 Jan 2021 · 1 min read

"अपराधबोध"

आज भाईदूज पर सुधारानी समय से पहले ही अमोल से मिलने जेल पहुंच गई थी। वह अपने साथ मिठाई का पैकेट एवं दीपावली पर बनाए पकवान साथ में लेकर गई थी। कैदियों की अन्य बहनें भी जेल के मुख्य द्वार पर खड़ी थीं। जेल प्रहरी ने बाहर आकर कहा- “कोरोनाकाल होने से इस बार कैदियों को किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री देना वर्जित है, आप कैदी को तिलक भी नहीं लगा सकती हैं, दो मिनिट से ज्यादा कैदी से कोई नहीं मिल सकता ,जेलर साहब का सख्त आदेश है।” सभी कैदी एक-एक करके बुलाये जाने लगे अमोल मुख्य दरबाजे के अंदर खड़ा था उसने देखा कि उसकी बहन तिलक का सामान सजाकर लाई है, परंतु विवश है । सुधारानी ने अमोल के चेहरे के भाव पढ़ लिए थे उसके चेहरे से अपराधबोध स्पष्ट झलक रहा था ।अमोल धीमे स्वर में बोला -” बहन, मेरी ओर से पिताजी से क्षमा मांगना मेरे कारण ही घर की यह दशा हुई है मैं 7 साल की सजा काटकर जल्दी घर लौट आऊंगा ,अब मैं कभी क्रोध नहीं करूंगा आप लोग मेरी चिंता न करें।” इतने में प्रहरी ने किसी दूसरे कैदी को बुलाने के लिए आवाज लगा दी।
सुधारानी पल्लू से आंसू पोंछती हुई वापिस जा रही थी।

(जगदीश शर्मा सहज)

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