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27 Dec 2020 · 1 min read

मैं और मेरे एहसास

कभी ये कलाइयां भी नाजुक हुआ करती थीं, मगर इंतजार था उन हाथों की गर्माहट का।
चूड़ियां लाल पसंद थी ,मगर इंतजार था किसी के पहनाने का।।
खुले आसमां के नीचे लेट के चांद सितारे निहराने का ख्वाब हमेशा था इन आंखों में।
मगर इंतजार था के कोई साथी हो जिसके होने भर से ,वो रात और खूबसूरत लगती।
अब और इंतजार नहीं करती
अब कलाइयां नाजुक नहीं रहीं, अब खुले आकाश में लेटा नहीं जाता।
बस अब और कुछ एहसास नहीं होता शायद वक्त बदल गया या मैं बदल गई वक्त के साथ।

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