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19 Dec 2020 · 1 min read

मुक्तक

बहुत दिनों पर मिलकर उसने यादों की परतें खोली हैं
नींद मेरी छीनी जिसने तुमरी आखें औ बोली हैं।
रही अधूरी चाहत जो थी पूरी कर लें आज अभी
गुलाल डालो तुम मुझपर मैं शरमाऊ आई होली है।।

–अशोक छाबडा

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