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28 Nov 2020 · 1 min read

एक ग़ज़ल

किसी दिन वो मेरी वफ़ा देख लेगा,
छुपा हूँ , ख़ुदा में ख़ुदा देख लेगा ।
ज़रूरत नहीं है, हमें मैक़दे की,
मेरा दिल तेरी इक अदा देख लेगा ।
सतायें, उसे याद मेरी कभी तो,
चिरागों में हमको बसा देख लेगा ।
चुना था उसे जो इबादत के खातिर,
चढ़ा है नशा, अब नशा देख लेगा ।
कोई भूल हमसे ; हुई गर जो होगी,
मजा भी; सभी अब सजा देख लेगा ।

– श्रीभगवान बव्वा प्रवक्ता अंग्रेजी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय लुखी रेवाड़ी

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