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19 Nov 2020 · 1 min read

ना जाने कब पाओगे तुम लोग मेरा सम्मान

कब होगा यह खेल बंद तुम लोगों के परपंचों का,
कब तक लिए फिरोगे सर पर हाथ ऊपरी मचों का,
कब तक निर्धन जन,बेबस फरियादी मारा जाएगा,
कब करना तुम बंद करोगे जनता का अपमान।

ना जाने कब पाओगे तुम लोग मेरा सम्मान

जाने कितनी लाशों को तुमने सिक्कों में तोला है,
नोट देखकर जाने कितनी बार हृदय भी डोला है,
दोषी में संतोष है कितना,निर्दोषी भय खाता है,
इनके जितने ऊँचे तमग़े हैं, उतनी ही झूठी शान।

ना जाने कब पाओगे तुम लोग मेरा सम्मान।

तुमको है अधिकार दिया किसने की तुम ही न्याय करो,
भेद,तर्क,भुजबल से तुम,सज्जन को ही असहाय करो,
अपराधी की ओट लिए अपराध तुम ही फैलाते हो,
फिर आँखों देखी से कैसे बन जाते अनजान।

ना जाने कब पाओगे तुम लोग मेरा सम्मान।

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