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7 Nov 2020 · 1 min read

सरहर के पार

शीर्षक – सरहद के पार

विधा – कविता

संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़ सीकर राजस्थान
मो. 9001321438
ईमेल – binwalrajeshkumar@gmail.com

खड़ा विचारों के धरातल
अक्स देखता उनका अविचल
मंद स्मित रेखा से परिवर्तन
हो जाता आकार विस्तीर्ण।

ढप जाता भूगोल काय का
उभर आते नृत्य करते
मंद हास में करूणा का सागर।

स्मित लहरी में नर्त्तन करती
उजड़ी बस्ती बसी हृदय में
मनुज टूटता श्वास ले रहा
चक्षु में दिखता उजड़ा दरिया।

सरहद के पार स्मित रेखा
विरोध रोष से अधर कम्पित
मिलता संबल शोषित मनुज को।

उठी आवाज समवेत सिसकती
कितनी पीड़ा समुदायों की।
अश्रु से अविचल हो जाता
पीड़ा सागर चढ़ता जाता।

‘रूद्राक्षी’ निराकार से आकार में
सरहद के पार स्मित रेख से मानव
हर बार भिगो देती,डुबो देती।

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