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29 Oct 2020 · 1 min read

" हाजमोला "

हमारे ” सभ्य समाज ” में इस तरह के ” सभ्य व्यक्ति ” सबके जीवन में एक ना एक तो होते ही हैं और जिनके जीवन में नहीं हैं वो ऐश करें…लेकिन सबके साथ कविता का आनंद ज़रूर लें ???

” हाजमोला ”

कैसे तुम इतना राज़ दबा लेते हो
बिना हाजमोला के सब पचा लेते हो ?

अगर खाने में कुछ तनिक भी खराब हो
तबियत नासाज़ है कह सबको बता देते हो ,

इतने गड़बड़ झाले अपने अंदर रखते हो
इतने गलत इरादे अपने साथ लेकर चलते हो ,

चेहरे पर ज़रा सी शिकन नही आने देते हो
बड़ी आसानी से सबको यूँ हीं भरमा लेते हो ,

हाजमोला तो बिगड़ते हाजमें के लिए खाते हो
दिल के गरल को कैसे झट हजम कर जाते हो ,

पल दो पल को तो सबको बहकाने में माहिर हो
कोशिश करते हो तुम्हारा झूठ ना ज़ाहिर हो ,

इतनी महीन चाल चलते बात – बात पर हो
पर पकड़ में आ जाते ज़रा सी बात पर हो ,

मैं सोचता हूँ ये दांव तुम्हारा आखिरी आखिर हो
लेकिन ये भी है पता तुम बड़े ही शातिर हो ,

सारी चालाकी तुम्हारी अब तो भुलाना होगा
मुझे भी अपना दिमाग थोड़ा सा चलाना होगा ,

हर छुपा राज़ अब तुम्हीं से निकलवाना होगा
एक अलग तरह का हाजमोला खिलाना होगा ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/10/2020 )

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