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9 Oct 2020 · 1 min read

कर रहे जब से वो नेकियाँ आजकल

कर रहे जब से वो नेकियाँ आजकल
दे रहे सब उन्हें धमकियाँ आजकल

हो रहीं हमसे क्यों ग़ल्तियाँ आजकल
देखते लोग बारीकियाँ आजकल

बारिशें फूल की कर रहे लोग जो
वो चुभाने लगे बर्छियाँ आजकल

भीड़ में भी रहे हैं अकेले सदा
शामे-ग़म में भी ख़ामोशियाँ आजकल

दूर जाने लगे हैं उजाले अभी
आ रहीं पास तारीकियाँ आजकल

जब से परदेस वो हैं गये छोड़कर
तब से गायब हुयीं शोख़ियाँ आजकल

कर रहे हैं ग़रीबों पे ये ज़ुल्म क्यों
दाग़ से हैं भरी वर्दियाँ आजकल

सब हैं ख़ामोश ताले ज़ुबां पर लगे
खो गयीं फ़िर कहाँ चाबियाँ आजकल

आज ‘आनन्द’ से जो चुराते नज़र
सब ही हारे हैं वो बाज़ियाँ आजकल

– डॉ आनन्द किशोर

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