आज़ाद गज़ल
सदियों से ही उचित न्याय की तलाश में हूँ
दलितों,पीड़ितों औ शोषित के लिबास में हूँ ।
ज़िक्र मेरी भला कोई करे क्योंकर ग्रंथो में
कहाँ नज़रो के,वाल्मिकी या वेद व्यास में हूँ।
हर दौर ही दगा दे गई यारों दिलासा दे कर
बस ज़रुरत के मुताबिक उनके पास में हूँ ।
रोज़ लड़ता हूँ लड़खड़ाकर जंग ज़िंदगी से
मुसीबतों के महफ़ूज साया-ए-उदास में हूँ ।
कभी तो अहमियत मिलेगी मेरी गज़लों को
अजय उस महफिल-ए-ग़ज़ल की तलाश में हूँ
-अजय प्रसाद