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4 Sep 2020 · 1 min read

तब मैं अपने झंडे गाडूँ

तब मैं अपने झंडे गाडूँ
फहर रही जो इनकी उनकी यश की ध्वजा उखाडूँ
रात दिवस ये सोंचूँ सबके बनते काम बिगाडूँ
खुद का काम बनाने वाले मौके पल में ताडूँ
दुखियारी आँखों में पढ़कर फौरन पल्ला झाडूँ
साथ आँधियाँ दे दें फिर तो बसते नगर उजाडूँ
अड़ा फ़टी में टाँग फ़टी को चिथड़े चिथड़े फाडूँ

संजय नारायण

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