कुरीतियां
युग बदला बदले युग वाले ।
फिर भी जिंदा है देखो
कुरीतियां फैलाने वाले ।।
बालपन में अब भी विवाह रचाते हैं ,
पिया मौत पर दुशजन,
नारी को कितना सताते हैं ।।
झूठे आडंबर रच कर,
स्वादु साधु कहाते है ।
तह खोजो गर इनकी
तो झूठे पक्केकहांते है ।।
नवीन युग के मेले में
कैसी यह कुरीतियां ।
तोड़ो इन जंजीरों को
बंद करो यह कुरीतियां ।।
– “राजेश व्यास अनुनय”