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17 Aug 2020 · 1 min read

~~◆◆{{????ताज आज़ादी????}◆◆}~~

कच्चे कदमों से नही मिलती आज़ादी,खून देकर आज़ादी का ख्वाब हक़ीक़त बनाया है हमने.

हमने नही लहराया किसी खास दिन तिरंगा खेल मैदानों में,रोज हज़ारों गोलियों के आगे खुद को आजमाया है हमने.

लिखे नही आज़ादी की शुभ कामनाओं के टुकड़े सैलाब की तरह हर जशन में,खुद सैलाब बन फाँसी का फंदा बसंती रंग में रंगवाया है हमने.

नही बजाये लाखों की भीड़ इकट्ठा कर आज़ादी के तराने,हाथ से हाथ मिला देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है,अंग्रेजो के सीने पे गाया है हमने।

हमने नही ओढ़ी कोई जात मजहब की चुनरी,हिन्दू मुस्लिम सिख एक ही मुट्ठी बन अपना खून देश की मिट्टी में बहाया है हमने।

तुम क्या जानो क्या होती है गुलामी,कितने ही मर गए आँखों के आगे,लाठी डंडों से पीटते मरते जान हथेली पे रख,सर वतन के दुश्मनों के आगे उठाया है हमने।

हम नही वो बच्चे कोमल फूलों से,पहाड़ से हौंसले थे हमारे,टुकड़े टुकड़े होकर भी फिरंगी को घुटनों में झुकाया है हमने।

भरी जवानी में पहने हैं शहीदी के कोहिनूर,खुद मिटाई हमारी माता ने अपनी कोख कुर्बान कर हमको इस देश पर,तब जा के माँ भारती के सर पर ताज आज़ादी का पहनाया है हमने।

हमसे पूछो क्या होता है जशन जंग-ए-जुनून-ए-आज़ादी,चूम चूम फाँसी का फंदा गले में डाल मुस्कराकर,इंक़लाब ज़िंदाबाद इंक़लाब ज़िंदाबाद दहाड़,फिरंगियों को भारत से मिटाया है हमने।

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