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16 Aug 2020 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

इच्छा और शक्ति के बीच जो दुरी है
आम आदमी की एक बड़ी मजबुरी है ।
बीवी-बच्चे व स्वयं की मांगे हैं अथाह
और विचारे की थोड़ी सी ही मजूरी है।
खुद्कुशी ख्वाबों की तो तय हैं मंज़िल
दफन हसरतोँ का होना भी ज़रूरी है।
चैन की सांस और आराम की ज़िंदगी
अजी वो तो जैसे कोई मृग कस्तुरी है ।
तुम भी अकेले क्या कर लोगे अजय
तुम्हारी भी तो कुछ अपनी मजबुरी है ।
-अजय प्रसाद

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