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31 Jul 2020 · 1 min read

भटकता ही रहा दर दर

भटकता ही रहा दर- दर ,कहीं मैं भीख ना पाया
मोहब्बत के सिवा मैं और कुछ भी सीख ना पाया
मिली बदनामियां , आंसू व गम तेरे लिए लेकिन
स्वयं को हार कर भी ,आपको मैं जीत ना पाया।
शक्ति त्रिपाठी देव

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