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25 Jun 2020 · 1 min read

इंसान बन कर जी

रिवाजे-इश्क़ से यह जिंदगी अंजान बन कर जी,
महल हो समाने तेरे तो फिर शमसान बन कर जी !
मिलेगा वक्त मुस्लिम पारसी औ जैन बनने का,
मगर पहले ज़रा सी देर को इंसान बन कर जी !!

©
शरद कश्यप

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