Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 May 2020 · 4 min read

“अजनबी हमसफ़र”

“अजनबी हमसफ़र”

वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली एक्स्ट्रा सीट पर बैठी थी, उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीसी ने आकर पकड़ लिया
तो !
.
कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीसी के आने का इंतज़ार
करती रही ! शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी ! देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा ! सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बैग दिख रहा था। मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा !
.
फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी !और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया !
.
लगभग 1 घंटे के बाद टीसी आया और उसे हिलाकर उठाया !
“कहाँ जाना है बेटा” “अंकल दिल्ली तक जाना है” “टिकट है ?” “नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”
“अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी देना होगा ”
“ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”
“ये तो गलत बात है बेटा ….
.
पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी”
“सॉरी अंकल …. मैं अगले स्टेशन पर जनरल में चली जाऊँगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई … और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी….” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी!

टीसी ने उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे दिल्ली तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन दे दी। टीसी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर हंस तो हीं रहा था !
.
थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं …दिल्ली स्टेशन पर कोई
जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भेज दे, वरना वो समय पर गाँव
नहीं पहुँच पायेगी। मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ
उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था, दिल कर रहा था कि उसे पैसे दे दूँ और कहूँ कि तुम परेशान मत हो … और रोओ मत …. लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था !
उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे। बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने लगा जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना
कहलाऊं !
फिर मैं एक पेपर पर नोट लिखा, “बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए देख रहा हूँ, जनता हूँ कि एक अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा और शायद
तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही है !
इसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ , तुम्हे कोई अहसान न लगे
इसलिए मेरा एड्रेस भी लिख रहा हूँ …..
जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो …. वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो ….. अजनबी हमसफ़र ”

एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे भेजा है ! नोट मिलते ही उसने दो- तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई
उसकी तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा ! लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था !
.
थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस देख कर लगा की जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था !उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया !
…. फिर चादर का कोना हटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर जैसे सांस ले रहा था मैं..
.
पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी ! जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी … ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर ही रुकी थी !और उस सीट पर एक छोटा सा नोट रखा था ….. मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया…और उस पर लिखा था … Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र ….
.
आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …. मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए आनन – फानन में घर जा रही हूँ !आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी …. उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ …
.
जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी ! उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे …. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाये …. आज 1 साल बाद एक ख़त मिला …
.
आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ …. लेकिन ख़त के
ज़रिये नहीं आपसे मिलकर … नीचे मिलने
की जगह का पता लिखा था …. और आखिर में लिखा था !
..
.
अजनबी हमसफ़र ……

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 328 Views

You may also like these posts

मंत्र की ताकत
मंत्र की ताकत
Rakesh Bahanwal
पंकज बिंदास कविता
पंकज बिंदास कविता
Pankaj Bindas
कल की भाग दौड़ में....!
कल की भाग दौड़ में....!
VEDANTA PATEL
जब भी अपनी दांत दिखाते
जब भी अपनी दांत दिखाते
AJAY AMITABH SUMAN
जिंदगी
जिंदगी
Sangeeta Beniwal
चढ़ते सूरज को सदा,
चढ़ते सूरज को सदा,
sushil sarna
धोखा
धोखा
Rambali Mishra
देशभक्ति(मुक्तक)
देशभक्ति(मुक्तक)
Dr Archana Gupta
कैफ़ियत
कैफ़ियत
Shally Vij
शहीद बेटे के लिए माँ के कुछ एहसास....
शहीद बेटे के लिए माँ के कुछ एहसास....
Harminder Kaur
Quote..
Quote..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
तुम्हारी असफलता पर
तुम्हारी असफलता पर
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
मैं दिया बन जल उठूँगी
मैं दिया बन जल उठूँगी
Saraswati Bajpai
!! पर्यावरण !!
!! पर्यावरण !!
Chunnu Lal Gupta
23/103.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/103.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सुनो - दीपक नीलपदम्
सुनो - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
अपनी चाह में सब जन ने
अपनी चाह में सब जन ने
Buddha Prakash
तन्हाईयां सुकून देंगी तुम मिज़ाज बिंदास रखना,
तन्हाईयां सुकून देंगी तुम मिज़ाज बिंदास रखना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
उम्र चाहे जितनी हो दिलों में प्यार होना चाहिए।
उम्र चाहे जितनी हो दिलों में प्यार होना चाहिए।
लक्ष्मी सिंह
बेमतलब बेफिजूल बेकार नहीं
बेमतलब बेफिजूल बेकार नहीं
पूर्वार्थ
दिवस संवार दूँ
दिवस संवार दूँ
Vivek Pandey
मुक्तक
मुक्तक
Neelofar Khan
मैं भी तो प्रधानपति
मैं भी तो प्रधानपति
Sudhir srivastava
सीता की खोज
सीता की खोज
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
आजकल की दुनिया में
आजकल की दुनिया में
भगवती पारीक 'मनु'
दोहे
दोहे
अशोक कुमार ढोरिया
काजल
काजल
Neeraj Agarwal
तुम खुशी देखते हों, मैं ग़म देखता हूं
तुम खुशी देखते हों, मैं ग़म देखता हूं
Keshav kishor Kumar
*महामना जैसा भला, होगा किसका काम (कुंडलिया)*
*महामना जैसा भला, होगा किसका काम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
किसी से लड़ के छोडूँगा न ही अब डर के छोड़ूँगा
किसी से लड़ के छोडूँगा न ही अब डर के छोड़ूँगा
अंसार एटवी
Loading...