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4 May 2020 · 1 min read

अहम से अहंकार

ख्वाबों ख्वाबों में ही हक़ीक़त से लड़ बैठा
भूभाग पर पांव काम कर जाते है
मैं आसमां में बिना सोचे उड़ बैठा।

ये कैसा अंधेरा था मेरे मन का
जो विश्वासपात्र बनता गया
मेरा ज्ञान बहुत प्रबल हुआ
पता चला में हतज्ञान बन बैठा।

अब मन आगे चल दिया
मुझे सिर्फ मैं ही सही लगता गया
ओर में सात्विक बन गया
और इस तरह खुद के अस्तित्व का हनन कर बैठा।

जब में क्षोभित हुआ तो पछतावा भी हुआ
विश्वासपात्र विश्वासघात कैसे बन गया ?
मूर्ख रहा मन में कारक ढूंढ़ रहा था
मैं अहम था अहंकार बन बैठा।

अब तक ज्ञान जो प्रबल था,भूल गया
भूभाग पर पांव काम कर जाते है
मैं आसमां में बिना सोचे उड़ बैठा
ख्वाबों ख्वाबों में ही हक़ीक़त से लड़ बैठा।

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