Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Apr 2020 · 1 min read

कश्मकश.......ज़िन्दगी की

कितना संयोग है ना
जिंदगी में मिलना बिछड़ना
लगा ही रहता है।
पर शायद उस एक क्षण के लिए
मनुष्य क्या कुछ करने को आतुर नहीं हो जाता।

वो क्या है ना
हम जो करतें है
उसका अंदाज़ा और पता हमें बख़ूबी होता है।
फिर भी
बस उस एक क्षण के लिए
शायद हमारे ऊपर हमारा संयम खो जाता है।

जब तक संयम ढूंढने में क़ामयाबी मिलती है
तब तक शायद
बहुत कुछ खो भी देतें है।
कितना ज़रूरी है ना
संयम को नियंत्रण में रखना।

हमें सही – ग़लत का भान भी होता है
परंतु फिर भी
उस एक क्षण के लिए
हम कुछ सोचने समझने की हालत में नहीं होते
या फ़िर होना नहीं चाहते।

इस भाग दौड़ वाले जीवन में
शायद हमसे कुछ पीछे छूट रहा है
और जिसकी ज़रूरत भी नहीं
उसमें हम बहते चले जा रहें हैं।

वैसे चार दिन की चाँदनी
कब तक रौशनी दे पाएगी
अपनी राहों में चलने के लिए
अपनी मंज़िल को तलाशने के लिए
जुगनू तो हमें ही बनना होगा।

वैसे अलग संदर्भ में देखूँ तो
सारे अनुभव भी होने ज़रूरी हैं
ताकि हमसे कोई ग़लती ना हो
या फ़िर
कोई ग़लती किये बिना
अपनी खुशहाल ज़िन्दगी जी सकतें हैं।

ये हमपर निर्भर करता है
हमारा जीवन जीने का तरीक़ा
वो तो हमारे हाथ में ही है
बशर्तें हम इसे किस तरह लेतें हैं।

सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)

Loading...