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25 Apr 2020 · 1 min read

चुनाव

चुनाव!
हटो, बगल हो, जाने दो, चुनाव आया है.

गाजे-बाजे की चिल्ल-पों, झंडों के मार्का तमाम,
पुख़्ते वादों का जामा ओढ़ मैला छलाव आया है.
हटो..

पाँच बरस है सरक गए, जुलूस-जलसे तब जागे,
कुर्सीधारी शहरी मंत्री को याद अपना गाँव आया है.
हटो..

देखो राजनीति की अनीति मारे चारों ओर हिलोरें,
देश सौंपने की घड़ी, पार्टी-पार्टी में टकराव आया है.
हटो..

चुल्हा-चक्की-कलम-कमल,हाथ-गेंद-रोटी-कम्बल,
असंगत चुनाव-चिन्हों का कैसा ठगी बहाव आया है.
हटो..

कुछ तुष्ट, कुछ में ताव, कुछ तो पड़े हैं सुस्त अपार,
जागरूकों के माथे मौसम का भारी दबाव आया है.
हटो..

हक़-हकीकत की बाबत, हों सभी चैतन्य फिलहाल,
मैया का तिरंगे में लिपटा ज़ोरदार सुझाव आया है.
हटो..

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