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5 Mar 2020 · 1 min read

तेरे साथ चलता रहि

तेरे साथ चलते – चलते
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मुझे राहें मिल गई थी
तेरे साथ चलते – चलते

हम तो राह भटक गए थे
ना दर था ना थे ठिकाने
गैरों से अपने बन गए
तेरे साथ चलते – चलते

अपनों ने सितम थे ढाये
सभी हो गए थे पराये
अंजानों ने दामन थामा
तेरे साथ चलते – चलते

बसती बस्ती जल गई थी
मेरी हस्ती मिट गई थी
बस्ती- हस्ती मिल गई हैं
तेरे साथ चलते – चलते

गम के बादल छा गए थे
उर पे बिजली ढ़ा गए थे
सुखविंद्र मुस्कराने लगें
तेरे साथ चलते – चलते

मुझे राहें मिल गई थी
तेरे साथ चलते – चलते

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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