Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
27 Jan 2020 · 1 min read

बाल्यकाल

——बाल्यकाल——
—————————
बचपन प्यारा बीत गया , काल सुनहरा बीत गया
जो दिल को भाता था,दिलकश जमाना बीत गया

मीठी -मीठी मुस्कान थी, मधु सी मधुर जुबान थी
बाल्य राहें आसान थी, मतवाला दौर बीत गया

शरारतें खूब करते हम, मस्तियाँ खूब करते हम
मटरगस्तियाँ करते हम, शरारती दौर बीत गया

ढीली निक्कर हाथों में ,नली बहती रहे नाकों में
धूल चढ़़ी रहती सांसों में ,मस्ताना दौर बीत गया

हम बच्चों की टोली थी, टोली में मनाते होली थी
प्यारी सी एक खोली थी, मौजों का दौर बीत गया

दुनियादारी से अंजान थे,हमारे स्वर्णिम अरमान थे
दिल भोले और नादान थे,रंग भरा तराना बीत गया

ननिहाल. बहुत प्यारा था,वहाँ सभी का दुलारा था
नानी का लाड़ न्यारा था,सत्कार जमाना बीत गया

पोखर में गोते लगाते थे, पूँछें पकड़ कर नहाते थे
सुर ताल राग मिलाते थे ,हर्षित जमाना बीत गया

बारिश में भीग जाते थे, किश्तियाँ खूब चलाते थे
पानी में दौड़ लगाते थे,सुहाना जमाना बीत गया

घर में कोहराम मचाते थे,सिर आसमान उठाते थे
कौतूहल,धमाल मचाते थे,बरसाती मौसम बीत गया

चोरी पकड़ी जाती थी,डांट – फटकार पड़ जाती थी
मम्मी ढांढस बंधाती थी, वो हसींं जमाना बीत गया

दादी कहानी सुनाती थी,माँ लोरी गाकर सुलाती थी
पिता की फटकार डराती थी,स्वर्णिम दौर बीत गया

खेल-खेल में हम लड़ते थे ,पल भर में गले लगते थे
संग-संग खाते-पीते थे, बेहतरीन जमाना बीत गया

बाल्यकाल बहुत मस्ताना,जिंदादिल भरा जमाना था
सुखविंद्र बचपन दीवाना ,सुपने की तरह बीत गया

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Loading...