Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
7 Nov 2019 · 1 min read

मैं और मेरा दिल

मैं और मेरा दिल
हम हैं बहुत नाजुक
संभल,कदम रखते हैं
कहीं कभी ना जाएं तिड़क
नाजुक शीशे समान गिर कर
बीखर जाएंगे टुकड़ों में
नहीं होंगें समेकित पुनः
विस्थापित उसी रूप,काया में
हो जाएंगे अलग थलग
यदा यदा के लिए सदैव
भावुक बहुत हैं हम
नम हो जाती हैं आँखें
मिली हुई अपनों परायों की
चुभन,चोट,टीस,पीड़ा और छल से
हो जाते है मै और हृदय भावहीन
शून्यतुल्य बिना मनोभावों के
मैं और मेरा हृदय हो जाते हैं
कभी कभी भयभीत
रात के सघन अंधेरों से
अज्ञानता,बाधा,अभिषाप से
अनहोनियों के आगमन से
भविष्य की चुनौतियों से
अपनो द्वारा घोपे पीठ पर छूरों से
मन के अहम और अहंकार से
मिटते संस्कृति और संस्कार से
लेकिन बावजूद इसके फिर भी
मैं और मेरा दिल रहते हैं
एक साथ एक स्थान पर
बढते रहते हैं सदैव आगे ओर आगे
बढाते हुए एक दूसरे का
ढांढस और साहस
पास-पास,आस-पास,संग-साथ

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Loading...