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31 Oct 2019 · 1 min read

एक दिन की सैर

हम सब यार मिले ।
जंगल की सैर चले ।।

गलियों से यूँ गुजरकर ।
चल दिए पगडंडी पर ।।

नभ में थे बादल छाये ।
राह में भी कीचड़ पाये ।।

कार्तिक मास की शाम ।
जा रहे थे जंगल धाम ।।

पहुँचे हम तालाब पास ।
उगी थी हरी भरी घास ।।

बढ़ते गए किनारे – किनारे ।
खुश थे सब मित्र आज सारे ।।

तालाब भरा था खूब लबालब ।
अठखेलियाँ करते पंछी सब ।।

खोजते खोजते चले राह ।
खुशियों की न थी थाह ।।

कंकर पत्थर लाँघकर ।
पहुँच गए शिलाओं पर ।।

डेढ़ कोस की यह दूरी ।
कर ली हम सबने पूरी ।।

आसपास थे पेड़ो के झुंड ।
पानी से भरा था एक कुंड ।।

तेंदू सीताफल के पेड़ खड़े ।
लगता था जैसे जिद पर अड़े ।।

बह रहा था कलकल ।
झरनों से निर्मल जल ।।

लगे निहारने सब छवि ।
ढलने लगा था अब रवि ।।

लगे बनाने हम सब दाल बाटी ।
उत्तम भोजन कहती मालवा माटी।।

देख देख लगे बादल गरजने ।
छा गया अंधेरा पेड़ थे घने ।।

हर पल का आनन्द लिया ।
सबने भरपेट भोजन किया।।

हाथ से हाथ न सूझ रहा था ।
अंधेरा बहुत ही गहरा था ।।

सबने रखे एक दूजे के हाथ थाम ।
बोल रहे थे जय जय दर्शन धाम ।।

पानी से होकर तरबतर ।
पहुँचे अपने – अपने घर ।।
—जेपीएल

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