Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Aug 2019 · 1 min read

यह सागर कितना प्यासा है।

जिसको जितना मिलता रत्न
और अधिक का करता यत्न,
अगणित नद पीकर सागर की
बुझती नहीं पिपासा है।
यह सागर कितना प्यासा है।

मिला न जग को अबतक तोष
विभव, रत्न हो या मणिकोष,
बाहर की सुषमा अनन्त पर
अंदर अमित हताशा है।
यह सागर कितना प्यासा है।

शमित न होता उर का ज्वार
अंतर्मन में तृषा अपार,
उड़ने को ले पंख गगन में
खड़ी सदा अभिलाषा है।
यह सागर कितना प्यासा है।
अनिल मिश्र प्रहरी।

Loading...