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29 Aug 2019 · 1 min read

चुप रहूंगा, माटी में

गुरुर है तुम्हे, तुम इस दहर में
आलिमों के हाथों से बचायेजाओगे।

वो तो वक्त बताएगा, खुदगर्जी के
हांथो माटी में कब दफ़नायेजाओगे!
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सड़ी हुई,

मवाद निकलती खोपड़ियों ने

मेरी नापसंदगी पे मुझे मैत दिया

तुम चुप, सब चुप

मैं बेबस, तुम बेसुध

तुम्हें जब तुम्हारे

पसंदगी, नापंसदगी

पे मारा जायेगा

दौराया और भगाया जायेगा

जब हलक से जान खींच के

निकाला जायेगा

मैं, मुर्दा भला

क्या ही करने पाउँगा… ?

चुप रहूंगा, माटी में

माटी से निकल भला, ‘मैं’

क्या ही कहने पाउँगा…?
…सिद्धार्थ

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