Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
28 Aug 2019 · 1 min read

पावन कर ले अन्तर्मन

पावन करले अन्तर्मन को धारण करके धर्म।
सूर्य उदय होने से जैसे रात अंधेरी दूर चली।
जीवन के हर दिन की बातें, न यादों का अर्थ।
रात्रि काल जो बीत गयी तो, बातें बीत चली।
अपमानों का कष्ट रहे न सम्मानों का गर्व।
राग द्वेष सब बगिया से पतझड़ सी बीत चली।
यह तन नश्वर रूप, रहे ना सृष्टि का सौंदर्य।
मोह नहीं करना प्राणी ये नाशवान संसार छली।
तनिक दिवस है साथ यहां सब उत्तम करले कर्म।
आनी जानी इस धरती से अब तो बीत चली।
बिता दिया तीनों-पन कोई बच न सका आकर्षण
रहा नहीं कुछ शेष, जीव अब जान गया सब मर्म
जग माया है भूल जा प्राणी ब्रह्मतत्व को जान सही।।
पावन करले अन्तर्मन को धारण करके धर्म।

Loading...